Bedtime at Sehaj’s home is never just about going to sleep – it’s that magical time when stories of courage, faith, and history come alive.
Tonight, little Sehaj cuddles next to his Nani Ji, eager to listen to a new sakhi from Nani, in these days of the Guru Tegh Bahadur Ji’s supreme sacrifice.
The following is a heartfelt conversation between a curious child and his wise Nani (grandmother), unfolding the unmatched courage and devotion of the two brothers who stood firm in the face of tyranny.
शहीद भाई मती दास, भाई सती दास जी
सहज – नानी जी वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतहि
नानी– वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतहि प्यारे बच्चे
सहज – Nani Ji last time you told me sakhi of Guru Tegh Bahadur Ji’s martyrdom and promised to tell a new sakhi today
नानी– Oh Really ! You still remember it.
सहज – Yes Nani Ji, I am really excited to hear about other Sikh martyrs.
नानी – OK, today I will tell you about Bhai Mati Das Ji & Bhai Sati Das Ji l
वह दोनों सगे भाई थे और भाई हीरा मल्ल के पुत्र थे, ज़िला झेहलम,करिआला गांव के रहने वाले थे l
यह परिवार गुरु हरगोबिंद साहिब जी के समय से ही गुरु घर से जुड़ा हुआ था l
भाई मती दास जी फ़ारसी भाषा के महान विद्वान् थे और गुरु तेग बहादुर जी के दीवान थे l
औरंगजेब के हुक्म अनुसार जब गुरु तेग बहादुर जी को आगरा से गिरफ्तार करके दिल्ली लाया गया, यह दोनों भाई भी उनके साथ थे l
सहज – फिर क्या हुआ ?
नानी – wait; I will tell you everything…
सबको दरबार में पेश किया गया और धमकाया गया कि वे इस्लाम कबूल कर लें या मौत के लिए तैयार हो जाएं l
उन्होंने दृढ़ता से इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया।
गुरु जी को ऐसे पिंजरे में कैद किया गया जिसमें न वह सीधे खड़े हो सकें और न ही बैठ सकें, पर गुरु जी अपने निश्च्य पर अडोल रहे l
फिर हकूमत ने सोचा कि गुरु साहिब में ख़ौफ़ पैदा करने के लिए उनके साथ कैद किये सिक्खों को भयानक तसीहे देकर शहीद किया जाए l
इस काम के लिए भाई मती दास जी को सबसे पहले चुना गया l
भाई मति दास जी को आरे से चीर कर दो फाड़ करने की सज़ा सुनाई गई lभाई सती दास जी को रूई में लपेट कर जिंदा जलाने का हुक्म हुआ l
सहज – क्या फिर वह डर गए ?
नानी – Not at all dear child.
पर जब भाई मती दास जी से आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा “मेरी आखरी इच्छा केवल यह है कि आरा चलते वक़्त मेरा मुख गुरु जी की तरफ़ हो” l
उन्हें लकड़ी के दो तख्तों के बीच जकड़कर, ऊपर से नीचे तक आरे से काट दिया गया।
आश्चर्यजनक बात यह है कि जब तक शरीर कटा नहीं, तब तक वे जपुजी साहिब का पाठ करते रहे।
अगले दिन भाई सती दास जी को रूई में लपेट कर जला दिया गया वह भी जपुजी साहिब का पाठ करते हुए शहीद हुए l
यह शहादत दुनिया के इतिहास में धार्मिक स्वतंत्रता और अटूट साहस का अद्वितीय उदाहरण है।
सहज – Nani ! I am really thankful to you for increasing my knowledge and bowing my head before the great martyrs.
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Story By – Gurcharan Kaur



